अंतरमन की भीषण ज्वाला,
कितने अश्रु पिया वह होगा l
गरज गरज कर कभी निशा में ,
खुल कर तो वर्षा ही होगा l
रातो रातो सोये जागे ,
कितने सपने बुनता होगा l
कितना ताप बढ़ा होगा जब ,
अंतरमन को पाया होगा l
टीश उठी होगी सीने में ,
छुप छुपकर वह भी रोया होगा l
आखिर कुछ तो खोया होगा ,
ऐसे न पुरुष फिर रोया होगा l
प्रेम कभी सम्मान कभी या,
निज सपनों को खोया होगा l
दबा अशीम वेदना दावानल ,
चुपचाप कहीं फिर सोया होगा l
युग युग में अटल परीक्षा पल -पल
जब वह देता आया होगा l
सीता को कभी राधा को ,
सती को शिव ने खोया होगा ,
त्यागो को बलिदानो को ,
हंस हंस कर गले लगाया होगा l
अधरो में वंशी रखने वाला ,
तब गीता ज्ञान सुनाया होगा l
भाव ह्दय के सहज जो उमड़े ,
उनको भी दफ़नाया होगा l
प्यासा प्यासा पास कुयें के ,
उल्टे पांव वह लौटा होगा l
पुरुषत्व के इस जामे में ,
निर्मल मन झुंझलाया होगा l
कितना ताप बढा होगा ,
जब अंतरमन को पाया होगा l
जंगल जंगल भटका होगा ,
मर्यादा की ओढ़े चादर l
अपनो के षडयंत्र छलो से ,
भला कहाँ बच पाया होगा l
प्रेम के खातिर उसने भी ,.
जड चेतन को झकझोरा होगा l
सिया विरह में विलखा होगा ,
सागर को तब लांघा होगा l
भीडो मे या एकांतो मे ,
जब भी वह फ़िर खोया होगा l
भीतर भीतर से उसको जब ,
अंतरमन झकझोरा होगा l
भरी जवानी में उसने जब ,
सपने अपने खोया होगा l
कितना ताप बढ़ा होगा जब ,
अंतरमन को पाया होगा l