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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मास्साब की बिटिया - नए तरह से दिखने वाला स्कूल बैग - अशोक कुमार पचौरी


मास्साब की बिटिया - नए तरह से दिखने वाला स्कूल बैग - अशोक कुमार पचौरी

देखने में तो आज का दिन भी पिछले कुछ गुजरे हुए दिनों जैसा ही था, लेकिन विद्यालय के कक्ष में एक अजीब सी रौनक, कुछ फुसफुसाहटें एवं वार्तालाप जारी था;
एवं उसका केंद्र था एक नए तरह से दिखने वाला स्कूल बैग, विद्यालय के सभी विद्यार्थी हाथ से बने हुए थैले या फिर खाद बीज एवं दवा वाले थैले में पुस्तकें रखकर लाते थे, लेकिन यह थैला एकदम अलग और नया था, एवं यह था किसका इसके जबाब में सिर्फ एक ही शब्द बार बार दीपक को सुनाई दे रहा था;

कुछ बालिकाएं बार बार उच्चारण कर रही थीं कि "यह थैला मास्साब की बेटी का है... मास्साब की बेटी का"।

मास्साब नाम सुनकर दीपक को सिर्फ इतना समझ में आया कि शायद विद्यालय में पढ़ाने वाले मास्साब की बिटिया स्कूल में पढ़ने आने लगी है यधपि मास्साब की बिटिया का अभी तक कुछ अता-पता नहीं था;

यह कैसे मुमकिन होसकता है? मास्साब तो शहर से साइकिल से गांव आते हैं तो ज़ाहिर है बिटिया भी साथ ही आयी होगी, जैसे कभी दीपक अपने पिताजी के साथ साइकिल से शहर जाता था।

दीपक हैरानी से उस नए तरह के शहरी स्कूल बैग को देखा जा रहा था और विस्मय से सोचता जा रहा था कि यदि मास्साब की बिटिया का बैग आगया,मास्साब स्वयं आगये, प्रार्थना होगयी, हाज़िरी बुल गयी तो नयी शिक्षार्थी मास्साब की बिटिया आखिर है कहाँ।

दीपक तीसरी कक्षा में पढता था, और एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखने वाला बालक था, वह स्कूल का होनहार विद्यार्थी था एवं उसके साथ के २ दोस्त जो उसी की श्रेणी में पढ़ते थे भी इस होड़ में शामिल थे।

तीनो आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे अचरज की बात यह थी तीनों ही उस स्कूल बैग को कोतुहलवश देख रहे थे हालाँकि अन्य दो क्या सोच रहे हैं शायद दीपक को मालूम न हो, लेकिन उसके बाल मन में तो बस नए तरह से दिखने वाला स्कूल बैग और जो अभी तक दिखाई नहीं दी थी वो मास्साब की बिटिया ही चल रही थी।

और चले भी क्यों न? कौतुहल का केंद्र था ही ऐसा जो किसी भी बाल मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता;

काले रंग का चटकनीदार बैग जिसमे चटकनी की सीध में सफ़ेद धारियां बनी हुयी थीं, एवं एकदम नया जिसमे बहुत सारी पुस्तकें होंगी शायद, क्युकी देखने में बहुत भारी जान पड़ रहा था;

लेकिन इतनी सारी किताबें तो कक्षा ५ के विद्यार्थियों के पास भी नहीं होती तो फिर यह नयी शिक्षार्थी किस कक्षा में पढ़ने आयी होगी?;

यह सब अभी दिमाग में चल ही रहा था कि अचानक से शोर होने लगा "मास्साब और उनकी बिटिया आगये - मास्साब और उनकी बिटिया आगये" !!

अनायास ही दीपक की नज़र पहले सामने पड़ी जहाँ उनके विद्यालय के इकलौते मास्साब पढ़ाने में व्यस्त थे, उसके बाद उस शोर की ओर जो बंदरों की भांति फर्श से उचक उचक कर जंगले के बाहर देख रही भीड़ कर रही थी, ;

बच्चों के उचकने की वजह से फर्श सिकुड़ने लगे; पहली पंक्ति एवं दूसरी पंक्ति के सारे बच्चे लगभग उचककर अपने पैरों पर हवा में बैठे मास्साब और उनकी बिटिया को बाहर रास्ते में आते देख रहे थे,
सभी बच्चे बहुत ही खुस एवं पहले से ज्यादा भौंच्चके थे, ;

चौथी पंक्ति में बैठे होने के कारन यह दृश्य दीपक को अभी दिखाई नहीं दिया था और न ही अन्य बच्चों की भांति अनुशासन तोड़ इधर उधर देखने की आदत थी उसमें - आखिरकार गांव के प्रतिष्ठित साहूकार एवं एक सरकारी अध्यापक जिनका गांव में रुतबा था एवं जिनको लोग "दीवान मास्साब" बुलाते थे ने एक बालिका के साथ स्कूल कक्ष में प्रवेश किया और स्कूल के मास्साब के पास जाकर बालिका की प्रवेश प्रक्रिया में जुट गए जिसने बहुत ही कम समय लिया;

लेकिन जितने समय में उस बालिका की प्रवेश प्रक्रिया ख़त्म हुयी उससे कहीं कम समय में ना जाने कितने बच्चों के मन में किस किस तरह के बीज अंकुरित हो चुके थे कहना मुश्किल है;

दीपक को सब कुछ सुनाई दे रहा था;

हंडो [कक्षा -५ का एक शरारती विद्यार्थी] एवं उसके अन्य साथियों का शोर, सोनिया[कक्षा ४ की बालिका] के हर वक्त गाये जाने वाला नाटक जिसको वह कविता की तरह जाती थी का स्वर "तोता बेचने वाला चिल्ला रहा था - तोता लेलो, तोता लेलो; बड़ा ही प्यारा तोता है; आपसे बात भी कर सकता है;" मास्साब और दीवान मास्साब के बिच की फुसफुसाहटें, बीच बीच में शरारती बच्चों को शांत करने का प्रयास करते मास्साब लेकिन इस सब के बाद भी उसके मन में बहुत जोरों से गूंज रहा था एक नाम "लता" जो मास्साब के पूंछे जाने पर उस नयी आगंतुक बालिका ने अपने श्रीमुख से बोला था; इतना तो ज़ाहिर था बालिका गूंगी नहीं थी;

नाम सुनने के बाद में दीपक को संगीत सा सुनाई देने लगा हालाँकि दीपक "लता मंगेशकर जी" के बारे में कुछ भी नहीं जानता था लेकिन फिर भी सिर्फ "लता" का नाम सुनकर ही संगीत के राग सुनाई देने लगे;

इस बालिका के बारे में सारी चीज़े अद्भुत थीं; उसका स्कूल का बस्ता;उसका नाम; उसका अचानक से प्रकट होना;क्यूंकि जहाँ तक दीपक को पता है दीवान मास्साब के पास एक ही बेटी है और वो बी.फार्मा कर चुकी हैं एवं अभी उनकी शादी भी नहीं हुयी है तोह यह बालिका कहाँ से अवतरित हुईं;

और सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाली चीज़ थी उस बालिका के सुन्दर बॉय कट बाल जिसमे वह बालिका बहुत ही सुन्दर एवं पढ़ी लिखी लग रही थी; तीसरी कक्षा में होने के कारण अंग्रेजी इस वर्ष उनके पाठ्यक्रम में सम्मिलित होनी थी;

हालाँकि दीपक के पिताजी ने उसको अंग्रेजी पढ़ाना दूसरी कक्षा से ही शुरू कर दिया था;लेकिन उनके लिए उस बालिका का तहजीब एवं शहरी भाषा में शब्दों को सीधा सीधा बोलना ही अंग्रेजी था; उदहारण के लिए गांव के बच्चे जहाँ बोलते "कां जाइरो है" को वह बोल रही थी "कहाँ जा रहे हो" यह सभी बच्चों के लिए जिसमे दीपक भी शामिल था के लिए बहुत अजीब स्थिति थी कि अंग्रेजी बोलने वाली बालिका स्कूल में आयी है;

अब तो उसके मुंह से शब्द भी नहीं फूटेंगे; हालाँकि यह विसंगति ज्यादा देर तक मन में स्थिर नहीं रह पायी और जब सबको पता चला की उसने कक्षा ३ में प्रवेश लिया है तो बस उसके अपनी पंक्ति में आकर बैठने का और उसका स्वागत करने का इंतज़ार करने लगे - लेकिन ऐसा मुमकिन न होसका क्युकी सोनिया एवं कक्षा ५ की अन्य बालिकाओं ने कौतूहलवश उसको अपने पास अपनी पंक्ति में बिठा लिया; दिन पढ़ते पढ़ते एवं लता के नए दिखने वाले स्कूल बैग में क्या है? को झांकते झांकते एवं लता को देखते देखते निकल गया;

स्कूल की छुट्टी हुयी एवं दीपक घर पहुंचा; घर जाकर उसको ज्वर आगया;

यह कोई साधारण ज्वर नहीं था; यह उस बालिका के बारे में हद से ज्यादा सोचने,स्कूल बैग एवं बालिका के बॉय कट फैंसी बालोंके बारे में ज्यादा सोचने के बाद शरीर के रसायनों के बिगड़ने पर आया हुआ ज्वर था।

लेखक : अशोक कुमार पचौरी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

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वेदव्यास मिश्र said

इ कहानी को पढ़ने तो हमका साफ-साफ पता चल रिया है भाई साहब पचौरी जी कि वो दीपक नहीं, आप ही हैं !! बचपन की खूबसूरत यादों को सहेजे बालपन को उकेरती हुई एक खूबसूरत शानदार कहानी !! सच कहूँ तो पूरी कहानी एक साँस में पढ़ गया क्योंकि आपकी लता के साथ-साथ मुझे अपनी संगीता भी याद आ रही थी !! बुखार हमका भी हुआ था और अक्सर हो जाता था और माँ थी कि नज़र उतारा करती थी सरसों के दाने और लाल मिर्च लेकर !! बहुत ही सलीके से कहानी के आवश्यक तत्वों का शानदार समावेश करते हुए कवि हृदय का भी परिचय दिया है आपने ..बैग की संरचनात्मक व्याख्यान..सफेद पट्टी..झांकने की ललक..कि अन्दर क्या-क्या है.. !! खुशी की बात ये है..मास्साब, आपकी कहानी में भी हैं !! मास्साब को चरणस्पर्श पहुँचे और आपको ढेर सारा आशीर्वाद !! और लता जी जहाँ कहीं भी हों, संगीता को दिलो-जान से चाहने वाले वेदव्यास की तरफ से ढेर सारा प्यार !! तो चलते हैं क्लास से बाहर और कुछ बात करते हैं लता और संगीता के बारे में 😍😍

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपकी समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय आचार्य जी, अभी दीपक का बुखार उतरा नहीं है आगे की कहानी अभी बाकी है, मेरा सभी पाठकों से अनुरोध है कि कहानी के सभी पात्र/घटनाएं/जगह काल्पनिक हैं एवं इनका किसी से मिलना एक संयोग मात्र है - आचार्य जी आप तो ज्ञानी हैं ऊपर दिया गया डिस्क्लेमर आपके लिए नहीं है!!

कमलकांत घिरी said

बहुत सुंदर रचना है सर जी👏👏 लगता है बहुत गहन स्मरण के बाद ये रचना रची गई है, बहुत सुंदर👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Nahi jyada Gahan Smaran ki avashykta nahi huyi Deepak Ki ankhon ke samne wo manjar tairta rahta hai ..🤣😀🤣😀 Deepak batata gaya m likhta gaya shukriya Kant sir

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