स्त्रियाँ सिर्फ शरीर से नहीं, मन और आत्मा से महसूस करने वाली रचनाएँ होती हैं।
उन्हें किसी पुरुष के शब्दों की ज़रूरत नहीं होती, वो सिर्फ नज़रें पढ़कर जान जाती हैं कि उनके लिए सामने वाले के मन में क्या है—
वो प्यार है या हवस,
सम्मान है या स्वार्थ,
अपनापन है या सिर्फ दिखावा।
वो अदाकारा होती हैं — इसलिए नहीं कि वो झूठ बोलती हैं,
बल्कि इसलिए कि वो हर सच्चाई जानकर भी अनजान बन जाती हैं।
क्योंकि उनका मक़सद मर्द को बेनकाब करना नहीं होता,
बल्कि अपने रिश्ते की सच्चाई को खुद परखना होता है।
स्त्री सब समझती है 'उपदेश' पर चुप रहती है...
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद