एक छोटे से बालक चीनू ने स्कूल के प्रांगण में अपने मुरझाए हुए गुलाब को पकड़ रखा था, निराशा सुबह की ओस की बूंद की तरह उसके मन से चिपकी हुई थी। उद्यान प्रतियोगिता एक सप्ताह दूर थी, और उसका सुंदर गुलाब का फूल, जो कभी मुस्कुरा रहा था, उसकी खुद की मुरझाई हुई आत्मा को प्रतिबिंबित कर रहा था।
पूरे बगीचे में उसके सहपाठियों का एक समूह इकट्ठा था, उनके चेहरे पर भी इसी तरह की चिंता के भाव थे। उनकी फल और सब्जियाँ, जो कभी फलती-फूलती थीं, अब रुकी हुई और पीली और बेजान हो गई थीं। निराशा की हवा भारी थी।
कदाचित चीनू सीधा खड़ा हो गया। उसे अपनी दादी के शब्द याद आ गए, "एक मुरझाया हुआ पौधा भी फिर से खिल सकता है, बस उसे सही देखभाल की ज़रूरत होती है।"
चीनू के पास कोई जादुई उत्तर नहीं था, लेकिन उसके पास शक्तिशाली दृढ़ संकल्प की चिंगारी थी । वह अपने साथियों के समूह की ओर बढ़ा, उसका गुलाब का फूल ऊँचा उठा हुआ था। एक आशा के प्रतीक के रूप में।
"शायद," उसने शुरू किया, उसकी आवाज़ दृढ़ और स्थिर थी, "हमारे बगीचे के फल, फूल, सब्जियां संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि हमने अपना ज्ञान साझा नहीं किया है। क्या होगा अगर हम सभी एक-दूसरे की मदद करें?"
मीना के चेहरे पर एक झिझक भरी मुस्कान उभर आई। "मुझे पता है कि सब्ज़ियों के लिए सही खाद कैसे बनाई जाती है!"
रौनक ने कहा, "मेरी दादी ने मुझे सिखाया था कि फूलों की देखभाल कैसे किया जाती है!"
धीरे-धीरे, समूह एक-दूसरे के करीब आ गया, माता-पिता और दादा-दादी से सीखें गए रहस्यों को साझा किया। एक पूरे दिन के अंत तक, उनके चेहरे, जो कभी चिंता से भरे थे, अब नए उद्देश्य से चमक रहे थे।
एक हफ़्ते बाद, निर्णायक मंडल दंग रह गया। एक बार संघर्षरत बगीचे में जीवंत फल, फूल और सब्जियों की बहार आ गई। सामूहिक देखभाल से पोषित चीनू का गुलाब का फूल खड़ा था, जो उनके साझा प्रयास का एक सुनहरा प्रमाण था। चीनू ने भले ही प्रतियोगिता न जीती हो, लेकिन उसने एक बहुत बड़ी जीत की प्रेरणा दी थी- सामूहिक सहयोग से कार्य करना और उसका दृढ़ विश्वास कि ज्ञान साझा करने से वह समाजोपयोगी हो जाता है।