कुछ मजनू, कुछ रांझा,
तो कुछ हुस्न के पहरेदार नज़र आएंगे।
कुछ मजबूर, कुछ बेबस,
तो कुछ लाचार नज़र आयेंगे।
जरा खिड़की का दरवाजा खोल बाहर तो देख,
इश्क में पड़ा हर आशिक बेरोजगार नज़र आयेंगे।।
---- कमलकांत घिरी
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
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तो कुछ लाचार नज़र आयेंगे।
जरा खिड़की का दरवाजा खोल बाहर तो देख,
इश्क में पड़ा हर आशिक बेरोजगार नज़र आयेंगे।।
---- कमलकांत घिरी