[बाल कविता]
प्रात काल का दृश्य मनोरम
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सुबह-सुबह जब कलियाँ डोलीं
डालों पर चिड़ियाँ कुछ बोलीं !
अमृत-रस घुल गया रगों में
मैंने भी जब आंखें खोलीं !!
रंग-बिरंगी प्यारी तितली
अपने घर से बाहर निकली !
सूरज ने अंबर से झाँका
किरणें उतरीं उजली-उजली !
काँव-काँव कर कौवा बोले
दरवाजे-दरवाज़े डोले !
उछल-कूद कर रहे जीव सब
ताक रहे हैं खिड़की खोले !!
कितना सुंदर, कितना अनुपम
कलरव लगता जैसे सरगम !
जल्दी उठ कर देख लिया है
प्रातकाल का दृश्य मनोरम !!
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~ राम नरेश 'उज्ज्वल'
मुंशी खेड़ा,
ट्रांसपोर्ट नगर,
लखनऊ
मो. 7071793707