राहें चाहे कठिन हों,
कभी न घबराना तुम।
अपने कर्तव्य-पथ पर बस,
आगे बढ़ते जाना तुम।
रब सब कुछ लेगा संभाल,
जो नहीं भी होगा हमारे हाथ।
राह के कांटे भी बनेंगे फूल,
अगर कुछ करने का हो मन में जुनून।
चाहत हो अगर कुछ कर दिखाने की,
तूफानों में भी नौका चलाने की,
खुले आसमान में पंख लगाकर उड़ जाने की—
तो बस एक "जिद" ज़रूरी है, ये सब कर पाने की।
किस्मत भी साथ देती है उनका,
जिनके हाथों में मेहनत की लकीरें हो।
जीत या हार तो हिस्सा है ज़िंदगी का,
बस ईमानदारी हो — ना कि जी-हज़ूरी हो।
शिल्पी चड्ढा