प्रकृति ने हमें अनेकानेक उपहार दिए हैं। जिनके अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। इनके बिना हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। वायु, जल, भूमि, आकाश, अग्नि इत्यादि जीवनोपयोगी तत्व निःशुल्क प्राप्त हुए हैं। अधिकांशतः मनुष्य परिश्रमी प्राणी है, इस प्रक्रिया में उसे थकान का अनुभव होता है। यह शारीरिक, मानसिक या दोनों हो सकते हैं।
उसे दूर करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है, पर्याप्त नींद। वह अवस्था जिसके पश्चात मनुष्य ही नहीं समस्त जीव पुनः जीवनी शक्ति को प्राप्त कर शारीरिक, मानसिक या दोनों रूपों में तरोताजा अनुभव करते हैं। यदि पर्याप्त नींद न मिले तो मनुष्य को शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की क्षति तो होगी साथ ही शरीर कमजोर एवं मस्तिष्क विकृत हो सकता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जो शरीर और मस्तिष्क को आराम करने और ठीक होने में मदद करती है। वयस्क मनुष्यों को आमतौर पर प्रति रात 6-8 घण्टे की नींद की आवश्यकता होती है। यह व्यक्ति के उम्र, स्वास्थ्य और जीवनशैली अनुरूप भिन्न-भिन्न हो सकता है।
इस संसार में ऐसे भी लोग हैं जो दिन-रात सोते रहते हैं। मानो जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है, केवल सोना। सोना अर्थात स्वर्ण नहीं नींद। इनके सोने की वजह परिश्रम नहीं अपितु आलस्य है। चारपाई अगर हमारी तरह बोल पाती तो निश्चय ही कहती मालिक मुझपर भी दया कीजिए। क्या? पता अपनी भाषा में कहती भी हो, जिसे ये अनसुना कर रहे हों। वैसे भी असहाय की सुनने वाला कोई नहीं। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें नींद ही नसीब नहीं होती। सिर्फ और सिर्फ काम। संतुलन आवश्यक है। संसार में कुछ भी यदि असंतुलित हुआ, तो निश्चय ही उसका परिणाम नुकसानदायक होगा।
एक वर्ग तो ऐसा भी है जो कुंभकर्ण के समान है, इनका वश चले तो उसे भी मात दे दें। कहा जाता है कि वे तो केवल वर्ष में छः माह तक सोते थे, उसके पश्चात जगाने पर जाग जाते थे। यह तो उतने वर्षों के मध्य में केवल एक बार जागते हैं, इच्छित फल प्राप्त कर पुनः सो जाते हैं। नींद ऐसी की एक बार आए तो खुले ही न। जब जागते हैं तो बड़े-बड़े वाद्य यंत्रों के साथ अपने जागने की उद्घोषणा करते हैं। गाड़ियाँ दौड़ती हैं, डीजे बजते हैं। जिस प्रकार कुंभकर्ण को कोलाहल से उठाया जाता बिलकुल वैसे। पर ये तो उनसे भी ऊपर हैं, जागते हुए सोते हैं। कुंभकर्ण जागने के पश्चात छः महीने तक जागृत रहते, अपना भोजन ग्रहण करते और ये छः जनम तक के लिए खा के सोये हैं। निरन्तर लूटकर खाए जा रहें हैं। सोये जा रहे हैं। ऐसे कुंभकर्णों की माया भी अपार है। कुंभकर्ण भी इनको देखकर लज्जित होते होंगे। इनकी नींद मुझसे भी गहरी और लंबी है। व्यर्थ ही मेरा नाम बदनाम है। जिनको जाग कर लोगों को जगाना चाहिए, वे खुद कुंभकर्ण से भी भयंकर नींद सोये जा रहें हैं।
🖊️सुभाष कुमार यादव