बहुत दिनों से सोचती हूं
एक शाम ख़ुद के नाम करूं
जिसमें 'मैं' मेरे ख़्याल और जज़्बात
जिस से 'मैं' बात करूं
दूर बहुत दूर जहां केवल 'मैं' और
बस 'मैं' से मिलु.....
काश मौक़ा मुझे मुझसे मिला दे
जो 'मैं' नित्य चाहूं
फ़ुरसद से जुड़े पल
यादों की सरगम जैसे...
वोही पल कल बदल के आएं
जिसे फिर से 'मैं' समझ पाऊं
काश ऐसा हो तो वक्त की
नज़ाकत को मुकाम मिले
सो गई हसरतें खिले
जिसे बाहों का उपहार 'मैं' दे जाऊं !!!!