कुदरत के बने संजोग
जानना चाहता हूँ
क्या है वो,जो हम दोनों को बाँधे हुए है।
कुछ तो जरुर है
जो हमें साथ चलने पर मजबूर करता है।
दो किनारे ही सही हम
हैं तो अब एक ही समुन्दर के ।
अगर मिलना मुमकिन नहीं
तो जुदा होना भी हमारे नसीब में नहीं है।
जब जीना साथ ही है
तो क्यों किनारे बन कर ही जिएँ ।
अहम छोड़कर जलधारा बन जाते हैं
एक-दूजे के न सही,इस समुन्दर के ही बन जाते हैं
अपने नहीं तो अपनों के ही बन जाते हैं..
वन्दना सूद