हम कितने परतंत्र ?
हम कितने गुलाम ?
हम कितने बुज़दिल ?
हम कितने अशांत ?
परम स्वतंत्रता में रहकर भी हम परतंत्र
परम शांति में रहकर भी हम अशांत
यह सरोवर
यह वनश्री
यह पशुपक्षी
कुछ कह रहे है
छोडो बेकार की बाते
चलो हम धन इकट्ठा करते है
चलो हम पाप का संचय करते है
चलो हम फिर से यहाँ आने की तजवीज करते है
हे भगवंत...
तुम परम स्वतंत्रता में वास करते हो।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️