शब्द, अर्थ, भाव व विचार,
आज सब के सब मौन हैं,
राक्षस या जानवर तो नहीं,
जाने वो क्रूर लोग कौन हैं।
पहलगाम की इस वादी को,
क्षण भर में बनाया श्मशान,
तुम, कुछ भी हो सकते हो,
यह निश्चित, नहीं हो इंसान।
निर्दोष, निहत्थे, मासूमों पर,
धर्म के नाम पर चलाई गोली,
मातम पसार दिया पल भर में,
जहाँ सजी थी, हँसी -ठिठोली।
लाचार होकर वो ज्यों बैठी थी,
अपने प्रिय के शव के पास में,
कल्पना से परे उसकी अवस्था,
गुजरी होगी वो किस संत्रास में।
चढ़ा कर दो अश्रु के श्रद्धांजलि,
माफ न करना, होना मत मौन,
करना उनकी भी हालत वैसी ही,
स्वयं को देख कर सोचें, मैं कौन।
🖊️सुभाष कुमार यादव