जाबिर हुसेन की कथा डायरी ‘छोटा सा एक पुल’ का मूल्यांकन
‘छोटा सा एक पुल’ पुस्तक जाबिर हुसेन द्वारा लिखित है। 2021 ई. में प्रकाशित, इस पुस्तक में लेखक के पिछले 40 वर्षों के अनुभव हैं, जिसमें कुल 76 रचनाएं हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद कई तरह के ख्याल हमारे मन में आए। सबसे पहले तो लगा कि ऐसा क्या ? लेखक ने कुछ भी लिख दिया । जो मन में आया लिख दिया पूर्व में क्या घटित हुआ और वर्तमान में क्या हो रहा है ? मतलब कुछ भी। लेकिन मेरा वैचारिक दृष्टिकोण विभिन्न स्तरों पर इस पुस्तक की परख की। निष्कर्षत: एक ही साहित्य के कई वैचारिक दृष्टिकोण हो सकते हैं। लेखक की इस रचना को पढ़ने के क्रम में कई तरह के विचार हमारे मन में आए । मैं इसपर समीक्षा लिखूं या न लिखूं । इसी क्रम में इस पुस्तक में लिखित शीर्षक ‘अनिर्णय की आत्मघाती रंग’ को पढ़ा, जिसमें लिखा था –“अपने पराक्रम की सीढ़ियां तय करते वक्त, बार-बार, खुद से क्यों पूछते हो, आगे बढ़े या नहीं।“1 तब मैंने यह निर्णय लिया कि चलो इस पर समीक्षा लिखी जाए। देखते हैं इसका क्या रंग हमारे सामने उपस्थित होता है।
प्रस्तुत पुस्तक आरंभ से अंत तक रोजमर्रा के अनुभवों से युक्त कथा डायरी के रूप में लेखक ने हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक ऐसी कथाओं का संग्रह है जिसे जाबिर हुसेन ‘कथा डायरी’ से अभिहित करते हैं। इस कथा डायरी को एक सूचना मात्र भी कहा जा सकता है। जो घटनाएं घट रही हैं, एक वह जो महसूस करता है । उसे अगले दिन नोट करता है । उसके समक्ष क्या हो रहा है ? किस तरह की राजनीति हो रही है ? पढ़ने के बाद ऐसा महसूस होता है! मानो जो हमारे आस-पास हो रहा है, लेखक ने उसी को लिपिबद्ध करने की कोशिश की है। राजनीति के गलियारे से गुजरते हुए वे तंज कसते हैं। “मौत का खौफ़ दिखाकर, दीप जलाकर, ताली और थाली बजाकर यह परखने की कोशिश का हिस्सा था कि हमारी उंगलियां किस सीमा तक जनता की नब्ज़ पर टिक सकती हैं। कर्फ्यू जैसे हालात पैदा करना, भविष्य में इससे भी सख्त नियमों का पालन कराना, इस रणनीति का हिस्सा था, जिसके अधीन पेट्रोल-डीजल की कीमत नए-नए अप्रत्यक्ष कर का भार जनता पर लादने की मंशा थी । गिरती अर्थ-व्यवस्था को संभालने की बजाय मौत के खौफ़ में डूबी जनता की प्रतिरोधी शक्ति को पूरी तरह नाकाम करना ही उनका राजनीतिक लक्ष्य था।“2
इन रचनाओं के केंद्र में आधुनिक समय, समाज, साहित्यिक, संवैधानिक, देशकालिक एवं समाज के नब्ज पकरते हुए, उन समस्याओं की बतकही है, जो आए दिन हमारे आस-पास घटित हो रही है। उनकी यह रचना उनके जीवन से जुड़ी उन प्रसंगों पर प्रकाश डालता है, जो लेखक ने अपने जीवन यात्रा में महसूस किया है।
हम अपने समक्ष कई समस्याएं, मुद्दे, परिवेश एवं परिवेशगत परिस्थितियों को देखते हैं । कुछ तो हमारे मन को छूकर निकल जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां एवं समस्याएं भी होती है जो हमारे दिलों-दिमाग में घूमते रहते हैं । समकालीन समाज की विद्रुपताओं को रेखांकित करती उनकी यह कथा डायरी स्वागत योग्य है । डॉ. जाबिर हुसेन ने भारतीय समाज में व्याप्त समस्याओं को बहुत करीब से देखा परखा एवं अपनी क्षमता के अनुसार उन समस्याओं से जूझते हुए आमजन को इंसाफ दिलाने का भर्षक प्रयास भी किया है।
कविता से मुठभेड़ शीर्षक कथा डायरी में लेखक की, श्री रामदास गुप्ता से हुई बातचीत से यह स्पष्ट होता है कि उनकी कविताएं प्रेरणादायक है। उनका समर्थन और संवेदना, उनकी रचनाओं को और भी महत्वपूर्ण बनता है । उनकी आदर्शवादी सोच और लेखक की कलम से उभरती भावनाएं समाज की समस्याओं और संवैधानिक मुद्दों पर समर्थन और आत्मविश्वास बढ़ाती है। उनकी बातों से यह स्पष्ट होता है कि कविता आज भी जीवंत है और समाज के खिलाफ हो रहे अन्याय का सत्य सबके समक्ष लाने का महत्वपूर्ण साधन है।
‘बिखर रही है बुनियाद’ प्रस्ताव के माध्यम से लेखक ने मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बुनियादी स्कूलों की बदहाल स्थिति का दिग्दर्शन कराने के साथ ही नई पीढ़ी के बीच गांधी विचार को जमीनी स्तर पर लागू करने का अनुरोध भी किया है, जो भावात्मक तौर पर नई पीढ़ी के लिए कारगर साबित हो सकता है। राज्य के बुनियादी विद्यालय के विषय में प्रस्ताव कुछ इस प्रकार है।–“राज्य सरकार यदि इन विद्यालयों की पुनर्सरचना, उन्नयन एवं संवर्धन के लिए एक स्वायत्त प्राधिकार का गठन कर सके और इसके लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध करा सके, तो बहुत अच्छा होगा। इसके लिए विधानमंडल में विधेयक लाया जा सकता है।“3
‘प्रतिभा का अवसान नहीं होता’ शीर्षक में लेखक की यादों की झलकियों में ‘रश्मि रेखा’ के गुजर जाने की दुख भरी दास्तां है । इस महान प्रतिभा के गुजर जाने के बाद, उन्हीं के द्वारा लिखित कविता ‘चाबी’ के द्वारा लेखक ने उन्हें सम्मान अर्पित किया है। रश्मि रेखा द्वारा लिखित कविता ‘चाबी’ का भाव है- एक छोटी सी चाबी जो अपने आप में अमूर्त खजाने का प्रतीक है, जो हर दरवाजा को खोलने की क्षमता रखता है। वक्त के साथ साहस और अनुभव का प्रयोग कर उच्च आधिकारिक दरवाजे खोली जा सकती है। चाबी विभिन्न स्थलों का मुआयना करते हुए जीवन की रंगीन रहस्यमयी यात्रा को दर्शाती है।–
“एक दिन यूं ही परी मिल गई
उसे कुछ चाबियां
जींनसे खोल जा सकते थे
जादुई ताले करिश्माई रास्तों के।“4
‘चौबारे में हलचल’ शीर्षक कथा डायरी में जाबिर हुसेन ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ कई मुलाकात की है । उनके विचारों के प्रति लेखक की भावनाएं एवं स्मृतियां एक अद्वितीय अनुभव है जो आजीवन याद रहेगा । इस संस्मरण में एक खूबसूरत कलाकृति और विश्वनाथ प्रताप सिंह का हस्ताक्षर के साथ की गई पुरानी यात्रा वर्णन है। उस अनमोल पल को लेखक अपने अनुभवों के साथ जोड़ते हैं और विश्वनाथ सिंह के सांस्कृतिक और राजनीतिक योगदान को महसूस करते हुए उनके द्वारा विधानसभा चुनाव से पहले बड़े नेताओं की एक शिखर बैठक में दिए गए भाषण का उदाहरण देते हैं –“हमें नॉर्थ इंडिया में कुछ सेक्युलर मुस्लिम और दलित नेताओं की तलाश करनी चाहिए, जिन्हें समय आने पर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सके। ये देश हित में है, ताकि समाज के इन तबको में लोकशाही के प्रति जो विश्वास पैदा हुआ है, उसे स्थाई रूप दिया जा सके।“5 राजनीति एवं साहित्य के गलियारे से गुजरते हुए लेखक ने इस पुस्तक में विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे कई ऐसे महान हस्तियों का जिक्र करते हैं जिनका योगदान समाज एवं राष्ट्र के लिए स्मरणीय है।
‘अनिर्णय के आत्मघाती रंग’ में लेखक ने स्व को प्रेरित करने वाले कुछ ऐसे प्रसंगों को समेटा है, जिससे पाठक प्रेरित होकर निःसंकोच कर्म पथ पर अग्रसर होने के लिए बाध्य हो जाता है। ‘अनिर्णय के आत्मघाती रंग’ में लेखक लिखते हैं –“ अनिर्णय एक प्रकार का अभिशाप है। है ना! सोचो, अगर पृथ्वी या ब्रह्मांड का सृजन करते समय प्रकृति अनिर्णय का शिकार हो जाती, तो ये सुंदर धरा क्या बन पाती!”6
‘अनिवार्य खुशबुएं’ में साहित्यकार होने के नाते लेखक अहम भाव से ग्रसित उस साहित्यकार व्यक्तित्व का जिक्र करते हैं, जो साहित्य से लगाओ न रखने वाले जनसमूह को तीसरे दर्जे का प्राणी समझने का भूल कर बैठते हैं। इस स्थिति में उनकी रचना भी प्रभावित होती है-“लेखक-साहित्यकार होने का गुरूर हमारे सिर चढ़कर बोलता है । जो साहित्य नहीं पढ़ते, कथा-कहानी या कविताओं से वास्ता नहीं रखते, उन्हें हम दूसरे या तीसरे दर्जे का प्राणी समझते हैं । हमारा यह गुरूर कभी-कभी इतना प्रबल हो जाता है कि खुद हम भी इसके प्रभाव से आहत हो जाते हैं । जब ऐसी स्थिति आती है, हमारा लेखकीय एकांत बहुत घनीभूत हो जाता है। हम इस एकांत में कोई सार्थक लेखन नहीं कर पाते।“7 इस प्रकार व्यापक अनुभव के अभाव में हमारा वैचारिक दृष्टिकोण विशिष्ट रचना करने से वंचित रह जाता है। विभिन्न बिंबों के प्रतिबिंब ही हमारी रचना को अन्य से भिन्न बनाती है । इस परिपेक्ष में एक रचनाकार को हमेशा सहज रहने की आवश्यकता होती है।
‘किस्सा आसमान के नीचे सरकने का’ शीर्षक में लेखक ने अत्याधुनिक कंक्रीटो के जंगल रूपी मकान के ओट से प्रभावित, उस जन चेतना को समझने की कोशिश की है। जो सुबह से लेकर शाम तक सर्दी के मौसम में धूप के लिए तरसते हुए, सीलन भरी वातावरण में रहने को मजबूर है। इसमें लेखक ने प्रार्थना करने वाले व्यक्ति की भावनाओं, उसके सपनों एवं उसे आसानी से पूरा होते हुए दिखाया है । व्यक्ति की असली संतुष्टि एवं समृद्धि अपनी सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां को समझने और उसे पूरा करने में है । इससे हमें अपनी आसपास की समस्याओं और जरूरत को समझने, समर्थन करने एवं उसका समाधान करने में आत्म संतुष्टि की प्राप्ति होती है । इस प्रकार व्यक्ति की सफलता आत्मसमर्पण एवं दूसरों की भलाई करने में निहित है।
सिफारिश प्रस्त और घूसखोरी करने वाले अधिकारियों के अन्याय पूर्ण रवैया से रूबरू करवाता उनकी कथा डायरी का एक शीर्षक है –‘मेरी कथा डायरी का एक पात्र’ जिसमें हरिशंकर इंजीनियरिंग कोर्स में नामांकन के लिए होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने के बावजूद, उसका नामांकन साक्षात्कार के दिन, आय प्रमाण पत्र के अभाव में नहीं हुआ । 36वें स्थान प्राप्त करने के बावजूद हरिशंकर का नामांकन न होकर 56वां स्थान प्राप्त करने वाले किसी युवक का नामांकन, दबंग मंत्री के सिफारिश पर हो गया। लेखक के सामने बैठा तनाव ग्रस्त हरिशंकर कहता है-“मेरा दोष इतना ही है कि मैं एक गड़ेरिया के घर में पैदा हुआ हूं । वो मुझे इंजीनियरिंग पढ़ने का अधिकार भला कैसे देंगे।“8 यह प्रसंग कई तरह के प्रश्न हमारे समक्ष उपस्थित करता है । आखिर कब तक हमारे देश में भेद-भाव के कारण प्रतिभावान लोग विवश और लाचार रहेंगे? योग्य लोगों को कब तक उनके अधिकारों से वंचित रखा जाएगा? अयोग्य लोग उच्च पद पर स्थापित होकर अपने जैसे लोगों को कब तक, इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बनाते रहेंगे? इसका अंत कब होगा?
प्रेरणा- यह पुस्तक बहुत ही प्रेरणादाई है। इस पुस्तक को पढ़ने से हमें ऐसा महसूस हुआ कि हम अपने जीवन में कई ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं, जिसे अगर हम लिपिबद्ध करते जाए तो उस परिवेश और समाज के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। हमारे अनुभव से राष्ट्र एवं समाज को संदेश या मार्गदर्शन मिल सकता है। हम अपने अनुभवों को संकोच बस अभिव्यक्त या उसे लिपिबद्ध नहीं कर पाते हैं। परिणामत: हम अपने आप को स्थापित भी नहीं कर पाते हैं । लेकिन लेखक ने नि:संकोच अपने तमाम अनुभव; छोटे, बड़े या टुकड़ों में हमारे समक्ष उपस्थित करने का प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया है । संकोच के कारण बहुत से लोग सोचते हैं कि क्या लिखूं ?कहां से शुरू करू एवं उसका प्रभाव पढ़ने वालो के ऊपर क्या पड़ेगा या फिर और भी कई कारण हो सकते हैं। इस दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो यह पुस्तक प्रेरणादायक एवं स्वागत योग्ग है । बहुत-सी हस्तियां ऐसी भी हैं, जो बड़े-बड़े घटनाओं को देखकर, वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझते हैं। इस परिपेक्ष में अगर देखा जाए तो लेखक ने साहस का काम किया है । उन घटनाओं, प्रसंगों एवं मुद्दों का मूक दर्शक न बनकर उसे लिपिबद्ध भी किया है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन घटनाओं से प्रभावित लोगों को निजात दिलाने का भर्षक प्रयास भी किया है।
भाषा शैली – यह पुस्तक जाबिर हुसेन ने कथा डायरी शैली में लिखी है, जिसकी कथानक संस्मरणात्मक स्वानुभूत घटना पर आधारित है। इस कथा डायरी में किसी घटना, कोई प्रसंग, किसी चरित्र, व्यक्तित्व आदि को प्रस्तुत करना लेखक का लक्ष्य है। इसमें स्थानीय भाषा के साथ फारसी भाषा का पुट भी दिखाई देता है । शैली सहज एवं सरल है। लेखक की अभिव्यक्ति शब्द का आश्रय लेकर अर्थ की अभिव्यक्ति में सफल सिद्ध हुई है। इस कथा डायरी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें एक अमिट प्रभाव छोड़ने वाला अनुभव वर्णित है।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि जाबिर हुसेन की यह पुस्तक, संघर्षरत आम आदमी और विशिष्ट जन पर लिखी गई। उनकी यह कथा डायरी साहित्य जगत में अनोखा पहल है, जो इसे विशिष्टता प्रदान करती है। आम आदमी के संघर्षों के प्रति सहानुभूति पूर्ण दृष्टांत, भावात्मक दृष्टिकोण से विभिन्न विषयों को समेटे हुए हैं। छोटे-छोटे किस्सों से यह किताब भरी पड़ी है। नई शैली में लिखी गई इस पुस्तक को पढ़ना रोचक लगा। मेरी समझ ने उपरोक्त वर्णित वक्तव्यों के आधार पर इस पुस्तक को परखा है। पता नहीं, मैं अपनी इस परख पर कितना खरा उतरती हूं।
संदर्भ:-
1. छोटा सा एक पुल, जाबिर हुसेन, दोआबा प्रकाशन, संस्करण – 2021, पृष्ठ संख्या-122
2. वहीं, पृष्ठ संख्या – 78
3. वहीं, पृष्ठ संख्या – 66
4. वहीं, पृष्ठ संख्या – 150-151
5. वहीं, पृष्ठ संख्या - 32
6. वहीं, पृष्ठ संख्या - 122
7. वहीं, पृष्ठ संख्या – 110
8. वहीं, पृष्ठ संख्या – 42
डॉ. चुन्नन कुमारी
सहायक प्राध्यापिका/विभागाध्यक्ष
हिंदी विभाग
एस.बी.कॉलेज, आरा
वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी, आरा
मो.नं.-7366974722
ई-मेल – chunnankumari303@gmail.com

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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