आज मेला लगा था
चार लोग थे
फिर भी मेला लगा था
कोई आया था
चार बातें हुई थी
बातें नहीं थी शायद
न बात करने का मन था
किसी को खरीदना था
किसी को बेचना था
इतना पता था
वह दो व्यापारी ही थे
और मैं मैं नहीं था
मैं वह सामान ही था
मैं वहाँ बस खड़ा हुआ था
हर व्यापारी अड़ा हुआ था
कही सामान सजा था
कही बोली लगी थी
एक बार मैं सौदा हुआ था
दिल को मेरे गोली लगी थी
किसी ने पैसे फेंके
किसी ने उठा लिए थे
बात इतनी नहीं थी
दोनों खड़े हुए थे
और फिर गले लगे थे
मैं अभी स्तब्ध खड़ा था
किसने क्या खरीदा?
सामान वही पड़ा था
खरीदकर भी मुझको
आपने क्या पाया?
मैं अब भी उसका हूँ
जिसे आपने था पैसा चुकाया
वह खुस हैं मुझको बेचकर
पैसे मिले हैं
सामान भी अपना बाद बेचकर
पैसे दिए मुझको खरीदा
मेले मैं ही छोड़कर आया
यह कैसा सौदा था
यह कैसा मेला था
मेरे समझ न आया
पैसे गए सामान भी
ख|ली हाथ इंसान घर आया
इतना सब करने के बाद
घर से बेटी और दे आया
फिर भी खुस हैं दोनों
मेले से आकर
एक खुस सब पाकर
एक सब लुटाकर
आज मेला लगा था
चार लोग थे
फिर भी मेला लगा था
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The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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