सोचा, अबके झिझक छोड़
कह दूंँगी
रंग दो मोरी
झीनी-झीनी चदरिया
यूंँ रुठे रहे तो
बीत न जाए
फागून साँवरिया
मारी पिचकारी जब
रंग भर -भर उसने
का कहूँ फिर आ गई बीच
लाज की चुनरिया
सो कहा मैंने
छोड़ो भी ये
मिलावटी रंग
तुम हो तो
हर दिन मेरी होली है
तुम्हारे सच्चे प्यार के
रंग में तो डूबी हीं है
तुम्हारी गोरिया