जीवन के रंग भी अजीब हैं
खुशियों में भी दुःख के नज़ीर हैं।
क्या मांगा था उन्होंने तुमसे बस
शुकून के दो पल तुमने उन्हें वो भी ना
नसीब होने दिया...
दुःख दर्द तबाही बर्बादी को हीं होने दिया।
उजाड़ कर जड़ें जन्नत की क्या तुम
जहन्नुम बनाना चाहते हो
ऐसी दहशतगर्दी से किसको डराना
चाहते हो..
सुन लो ऐ देश के दुश्मन अब जन्नत में
बारूदों की बू नहीं कश्मीरियत की
खुशबू आती है..
इन चीड़ देवदार के वृक्षों से एक नई
जवानी आती है..
आरे जाओ हम इन कायरतापूर्ण कुकर्मों से
नहीं डरते हैं
हम लहरें हैं हम फिर लौटते हैं..
डरा ना सजा कोई
झुका ना सका सर कोई
हम हूनर सब जानते हैं
हम पागल जानवरों को भी
नकेल कसना जानते हैं
है जो जन्नत ख़ुदा के वास्ते
उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता है
है कश्मीर हमारा सिरमौर
देखतें हैं वहां जाने से कब कौन कैसे
रोकता है..
है यह भारत की धरती
यहां तप त्याग मनोबल से हर बचा बचा
लैस रहता है..
सभी के दिल में यहां कश्मीर रहता है..
सभी के दिल में कश्मीर बसता है...