सब खेल नज़रिए का है
नज़रिया का क्या कहना जनाब !
भावनाओं को क्या खूबसूरती से ब्याँ करता है
कोई मूर्ति को पत्थर मानता है
कोई पत्थर को मूर्ति कहता है
कोई मूर्ति को पूजकर भी उसे पत्थर ही मानता है
कोई विरला ही है जो
पत्थर की मूर्ति को भगवान कहता है
कोई विरला ही है जो
भगवान मान कर उनसे दुलार करता है
कोई विरला ही है जो
उन्हें ही अपना माता पिता गुरु भाई सखा सब मान लेता है
कोई विरला ही है जो
पत्थर की मूर्ति में उनके साक्षात दर्शन पाता है
विश्वास से भरा नज़रिया ही है जो
सब ख्यालों को हकीकत बनाने का हुनर रखता है ..
वन्दना सूद