कहां कुछ समझ आने की उम्र है इनकी
अभी तो खेलने खाने की उम्र है इनकी
बचपना है नादानी है अभी मासूमियत है
अभी रूठकर बैठ जाने की उम्र है इनकी
कभी किताब तो कभी कलम गुम हो गई
बहाने नए कुछ बनाने की उम्र है इनकी
दरिया में उतरेंगे तैरना भी सीख जायेंगे
अभी किनारे बैठ. जाने की उम्र है इनकी
दास मालूम नहीं जमाने का चलन इनको
दिल खोल सच बताने की उम्र है इनकी।