क्रोध
शिवानी जैन एडवोकेट
क्रोध की लहर जब उठती है,
विवेक की नाव डूबती है।
शब्दों के तीर ऐसे चलते हैं,
जैसे हो कोई बिजली गिरती है।
अपनों के दिल को तोड़ते हैं,
विश्वास की डोर को छोड़ते हैं।
क्रोध का विष फैलाते हैं,
खुशियों को दूर भगाते हैं।
मन में अशांति भर जाती है,
सुकून की नींद उड़ जाती है।
क्रोध के कारण हम खोते हैं,
अनमोल रिश्ते और नाते।
पश्चाताप की आग में तपते हैं,
खुद को ही दोषी समझते हैं।
शांति का मार्ग अपनाओ,
क्रोध को दूर भगाओ।
प्रेम का अमृत पियो,
जीवन को सुख से जियो।
क्रोध को त्याग दो प्यारे,
प्रेम से जीवन सँवारे।