अभी यादव महोदय जी द्वारा लगाए गए गब्बर सिंह जी के जासूसों एवं हरिया जी से बमुश्किल पीछा छूटा ही था, और मैं चैन की साँस लेकर पानी पीने के बारे में सोच रहा था, तभी याद आया कि मुझे आज 'पीपल का पेड़' रोपना था, यदि नहीं रोपा तो आज और बाकी के गुजरे दिनों की दिनचर्या में क्या अंतर रह जायेगा, फिर वंदना जी को जबाब भी देना है चूँकि वो भी जबाब के लिए प्रतीक्षारत हैं,
यदि जबाब नहीं दिया या उनको कहीं से मालूमात हुआ की 'पीपल का पेड़' का वृक्षारोपण नहीं हुआ है तो कहीं वह भी गब्बर सिंह, हरिया या उनके अन्य मित्र शाकाल,डाँग इत्यादि को मेरे पीछे न लगा दें, मैंने पानी पीने के विचार का परित्याग कर 'पीपल का पेड़' लगाने के बारे में सोचना शुरू किया, और माता जी के पास गया उनको अवगत कराने, कि थोड़ी देर के लिए बाहर जा रहा हूँ मुझे आज 'पीपल का पेड़' लगाना है, बस फिर क्या माता जी ने कहा अशोक का पेड़ लगा ले, नीम का पेड़ लगा ले यहाँ तक कि गमले में फूल पत्तियों वाले पौधे लगा ले, पीपल का पेड़ घर के पास रोपना अच्छा नहीं होता 'पीपल का पेड़' नहीं लगाने दूंगी।
मैं कारण जानने के लिए उत्सुक था, ऐसा क्यों? माताजी का जबाब भी आया और उस जबाब ने मुझे कई तरह से हैरान कर दिया, पीपल के पेड़ को घर पर या घर के आसपास नहीं लगाना चाहिए क्युकी यह उचित नहीं होता, यह घर से दूर ही ठीक रहते हैं, इन पर दायी देवताओं का निवास होता है, यदि किसी के यहाँ आसपड़ोस में भगवान न करे कोई आपत्ति विप्पति कड़ी हुयी तो सारा दोष तुझ पर और तेरे पीपल के पेड़ पर आजावेगा, इसलिए मेरा कहना मान पीपल का पेड़ मत लगा वैसे भी पीपल के पेड़ अपने आप उगते एवं फलते फूलते हैं हमने तो अपनी जिंदगी में किसी को पीपल का पेड़ लगते हुए नहीं देखा है।
बहुत बुरी दुविधा में फसा, पिछली बार जब घर के सामने पपीते का पेड़ रोपा था तो पड़ोसियों को रास नहीं आया, जब डेंगू हुआ कुछ पड़ोसियों को तो भाग भाग कर उस वृक्ष के पत्तों को तोड़ने आजाते, दिन प्रतिदिन उसके पत्ते गायब होते रहते, अंत में जब सब ठीक हुआ तो वही वृक्ष हमारे पड़ोस के घर वालों को सिर्फ इसलिए खटकने लगा कि उसके दो पत्ते उनके घर की सीढ़ियों की साइड में जा रहे थे और उनका मानना था की वह दो कोमल पत्ते उनको मोटर साइकिल ऊपर करने में आड़े आते हैं,
परिणाम स्वरुप उन्होंने उसके पत्ते तोड़कर घर के सामने फेंकना शुरू कर दिया, उसी दौरान मैं भी कोविड रोग के प्रभाव से उभर रहा था, मेने उनसे विनती की कि यदि पत्ते आड़े आरहे हैं और आप उनको तोडना उचित समझ रही हैं तो कृपा करके तोड़ने के बाद उन्हें फेंकने की जगह मुझे सौंप दें मैं उनका उपयोग इम्युनिटी बढ़ाने के लिए उनका सेवन करके कर लूंगा, लेकिन पता नहीं उनको क्या भूत सवार हुआ दो दिन बाद सारे पत्ते गायब, क्युकी मेरी तबियत इतनी भी बेहतर नहीं थी कि ज्यादा चल फिर पाऊ जिसके कारण दो दिन बाहर नहीं जा पाया और जब अंततः बहार गया तो पेड़ एकदम निर्वस्त्र अवस्था में था जिस पर ३-४ छोटे छोटे पपीते के फल लगे हुए थे,
अगले दो तीन दिन बाद जब बाहर आया तो वह फल भी नहीं थे, अब यह कहना तो जायज़ नहीं होगा कि फल उन्होंने गिराए थे या खुद गिर गए क्युकी इसका कोई प्रमाण नहीं है उधर गिलोय की लता घर की दीवार पर होकर उनकी छत तक जा पहुंची, पहले पहल तो उन्होंने उसको निमंत्रण दिया और एक रस्सी के सहारे छत पर पलने दिया बाद में एकाएक क्या हुआ पूरी लता उखड दी यह कहकर की इसके सहारे साप कीड़े छत तक आ सकते हैं, और वह पपीते का पेड़ भी अब नहीं रहा क्युकी उसकी पनपने की शक्ति को बार बार उखड फेंकने से उसका अस्तित्व खत्म होगया।
यह सब सोचकर माताजी का कहा गया शब्द की पडोसी जीने नहीं देंगे के चलते 'पीपल का पेड़' लगाने का विचार त्याग दिया, और अंत में इसी वार्तालाप में जब संध्या होगयी तो माताजी ने कहा अब जो भी लगाना है कल लगाना कहकर मुझे चवन्नी के चार आने वाला चूरन देकर वापस अपने कमरे में भेज दिया, निष्कर्ष यह निकला कि में आज भी पेड़ नहीं लगा पाया हूँ, वंदना जी से क्षमा प्रार्थी हूँ, कल प्रातः पहर में ही अशोक का वृक्ष रोपने का निर्णय लिया है जिसको अवश्य ही रोपूँगा और अबकी बार पड़ोसियों की तरफ न रोपकर अपने दरवाजे के पास रोपूँगा जिससे उनकी मोटर साइकिल आसानी से चढ़ पाए और वृक्ष की टहनियों से हाथ लगाने का मौका न मिले।
अब 'पीपल का पेड़' कहाँ लगाऊं यह सोचकर परेशां हूँ - पीपल का पेड़ कितनी शीतल हवा देता है कितने ही पंक्षियों का बसेरा होता है, ऐसा सुना भी है की सर्वाधिक ऑक्सीजन पीपल का पेड़ ही उत्सर्जित करता है, हालाँकि मेने अभी इसके बारे में जाँच पड़ताल नहीं की है, वह भी करूँगा, और उसके साथ साथ उसका रोपण भी,
आशा करता हूँ कि अभी कोई जासूस मेरे पीछे न लगे हों सुबह तक एक पेड़ रूप कर इन जासूसों के चंगुल से बचना है 'पीपल का पेड़' फिर भी बाकी है।
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




