ये अपनी राहें भटके है
कोई इनको राह दिखा तो दो।
ये वहशी और दरिंदे है
कोई इनको इंसान बना तो दो।१
ये मानवता के कातिल है
कोई इनको राह दिखा तो दो।
मानव तस्करी में लिप्त है ये
कोई इनको हनुमान बना तो दो।२
इस कलियुग में हम सब ही है
जो कली और कल्कि में बंटतें है।
तुम देखो खुद को जांचों फिर
किसी को कल्कि ही बना तो दो।३
हाहाकार मची सब ओर
है जनमानस को प्यास लगी।
अहंकार और दंभ के बीच
कोई दूत कृष्ण सा ला तो दो।४
कोई नफरत ना फैलाएं यहां
फिर दोबारा इस भारत में।
ऊंची-नीची जाति को छोड़
कोई प्रीत की बंसी बजा तो दो।५
किसी रंग-भेद की नीति का
प्रकृति नहीं करती प्रसार।
सूर्य और चंद्र ना बंटे हुए
इनको कोई बतला तो दो।६
घर की छत से आती किरणें
सूर्य प्रत्यक्ष देते दर्शन।
शनि का घर ये, है श्रापित
इनको ये ज्ञान दिला तो दो।७
तुम लड़ते-मरते जीते हो
इज्ज़त में भेद भी करते हो।
इसकी लड़की मेरी कैसे ?
चलो इसको ही दाग लगा तो दो।८
ये जीना भी कोई जीना है !
खाना-बदोश बने जाते हो।
उसकी लड़की भी तेरी बेटी
चलो उसका अब दाग हटा ही दो।९
पैसों से जीता जाता धन
कोई मनों को कैसे जीत सकता ?
इतिहास सुनाता गाथाएं
आज इनको भी सुनवा ही दो।१०
एक नाम सिकंदर का आता
सर पे जुनून उसे शासन का।
महत्वाकांक्षा थी विश्व पटल पर
सिकंदर महान लिखवा ही दो।११
थी सेना उसकी सुसज्जित
लांडा-लश्कर था रौबीला।
पृथ्वी की परिधि को चूम
सिकंदर का परचम लहरा ही दो।१२
पूरब से लेकर पश्चिम
फिर उत्तर से पूरा दक्षिण।
मार-काट कर दुनिया में
अब हाहाकार मचा ही दो।१३
थी सेना भी हुड़दंग हुई
खाती-पीती करती संहार।
जाती थी सो अबलाओं संग
कि सिकंदर ही सब जगह फैला ही दो।१४
लुटती इज्जत रोते घरबार
थे नावाजिब बिकते नर-नार।
बच्चों और बूढ़ों से अब तुम
सिकंदर की जयकार करवा ही दो।१५
चौतरफा घिरे जब बेबस तन
थे रोटी के गुनहगार।
उनकी भूखों के बदले तुम
उनका सब गिरवी रखवा ही दो।१६
मर गया एक दिन फिर वो
था गया मुठ्ठी को खोले हुए।
कि अंतिम इच्छा ये ही थी
तुम दुनियां को बतला ही दो।१७
कि जीते जी मैंने सबको लूटा
क्या मुगल-सल्तनत क्या भारत।
पर मरते समय ना ले जा पाया
एक फूटी कौड़ी मेरे साथ दफना ही दो।१८
तुम दुनियां को बतलाना कि
दूसरा सिकंदर कोई ना बनने पाए।
ये राह बुरी गफलत से भरी
ऐसा सब तुम छपवा ही दो।१९
कि जिस दिन सिकन्दर मरा था
वो खाली हाथ ही विदा हुआ।
जीते जी था पागल कि इस
धरती की शोहरत हासिल करवा ही दो।२०
पैसे और दंभ में चूर था मैं
ना जाना कभी इंसान ही हूं।
मुझको भी ज़रूरत होगी ही
मेरी अर्थी को चार कंधे दिलवा ही दो।२१
जब कंधे तेरे और शव मेरा
ये दुनिया रैन बसेरा है।
फिर किस बात की आपाधापी
जनमानस को ये समझा ही दो।२२
बंद मुट्ठी में भाग्य भर के
इस धरती पर बालक आता है।
जाता है हाथ पसारे हुए
कि इस युग में जीवन पनपा ही दो।२३
ये किस्सा बड़ा पुराना है
करता है प्रेम की ये दरकार।
कि विश्व को हे भारत अब तुम
सर्वे भवन्तु सुखिन का पाठ पढ़ा ही दो।२४
_____मनीषा सिंह

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




