पूरा सवाल ज़िंदगी का, हमसे कभी हल ना हुआ..
कोई सपना अधूरा रहा, कभी मुकम्मल ना हुआ..।
कभी बरस यूं ही गुज़र गए, कभी पल भी मुश्किल बीता..
वक्त ने ही छल किया, हमसे कभी छल ना हुआ..।
एक तो दुनिया ने हमको दुनियादारी ना सिखलाई..
और ज़माना भी हम जैसा, कभी सरल ना हुआ..।
होंगे दिल के शाहजहां, और मुहब्बत की मुमताज भी..
मगर चांदनी में नहाया, कोई वैसा ताजमहल ना हुआ..।
उनको उम्मीद थी, हम उनके मन मुआफ़िक़ ढल जाएंगे..
दिल ज़िद्द पर ही रहा, फितरत में फेरबदल ना हुआ..।
पवन कुमार " क्षितिज"