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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

खुद से

खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
बात दूर तलक जा पहुंची
टुकड़ो में इश्तेहार गया

खबर को खबर लगी खबरी से
बढ़ा चढ़ा के बात कही
बातों के रग में सच बहा झूम के
दिन को उसने रात कही

आँखे मानो खुल गयीं अचानक
उससे उसका किरदार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया

शोर हुआ हो गया सवेरा
काली रातों के साये में
भेद जैसे कर पाया न कोई
अपने और पराये में
रिश्ता काली रातों में गुम था
कोई तो उसे संभार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया

तन्हाई के आगे बेबस
किस्मत से दो - दो हाथ
मुफलिसी के दौर में भला
हो ही क्यों कोई मेरे साथ
रिश्ते टूटे... सब थे झूठे
हाथ से निज व्यापार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया

मन में मन से मौन लड़ाई
अक़्सर होती रहती है
बोझ कई झूठेपन का
सांसें हरदम सहतीं हैं
भला था उस सोयेपन में
कोई हकीकत का जल फुहार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
-सिद्धार्थ गोरखपुरी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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Manju Sharma said

मन में मन से मौन लड़ाई अक़्सर होती रहती है बोझ कई झूठेपन का सांसें हरदम सहतीं हैं भला था उस सोयेपन में कोई हकीकत का जल फुहार गया खुद से शर्त लगाया मैंने और खुदी से हार गया waah waah !! kya panktiyan hain bhav vibhor kar diya...

सुभाष कुमार यादव said

कमाल, बेमिसाल। लाजवाब रचना सर जी। आपकी रचना पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया।👌👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

खबर को खबर लगी खबरी से बढ़ा चढ़ा के बात कही.....खुद से शर्त लगाया मैंने और खुदी से हार गया.....waah सिद्धार्थ ji kya kahne hain... Lazwaab Rachna....🙏🙏👌👌🙏🙏

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