Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

खुद से

खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
बात दूर तलक जा पहुंची
टुकड़ो में इश्तेहार गया

खबर को खबर लगी खबरी से
बढ़ा चढ़ा के बात कही
बातों के रग में सच बहा झूम के
दिन को उसने रात कही

आँखे मानो खुल गयीं अचानक
उससे उसका किरदार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया

शोर हुआ हो गया सवेरा
काली रातों के साये में
भेद जैसे कर पाया न कोई
अपने और पराये में
रिश्ता काली रातों में गुम था
कोई तो उसे संभार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया

तन्हाई के आगे बेबस
किस्मत से दो - दो हाथ
मुफलिसी के दौर में भला
हो ही क्यों कोई मेरे साथ
रिश्ते टूटे... सब थे झूठे
हाथ से निज व्यापार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया

मन में मन से मौन लड़ाई
अक़्सर होती रहती है
बोझ कई झूठेपन का
सांसें हरदम सहतीं हैं
भला था उस सोयेपन में
कोई हकीकत का जल फुहार गया
खुद से शर्त लगाया मैंने
और खुदी से हार गया
-सिद्धार्थ गोरखपुरी




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Manju Sharma said

मन में मन से मौन लड़ाई अक़्सर होती रहती है बोझ कई झूठेपन का सांसें हरदम सहतीं हैं भला था उस सोयेपन में कोई हकीकत का जल फुहार गया खुद से शर्त लगाया मैंने और खुदी से हार गया waah waah !! kya panktiyan hain bhav vibhor kar diya...

सुभाष कुमार यादव said

कमाल, बेमिसाल। लाजवाब रचना सर जी। आपकी रचना पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया।👌👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

खबर को खबर लगी खबरी से बढ़ा चढ़ा के बात कही.....खुद से शर्त लगाया मैंने और खुदी से हार गया.....waah सिद्धार्थ ji kya kahne hain... Lazwaab Rachna....🙏🙏👌👌🙏🙏

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


LIKHANTU DOT COM © 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन