उजड़ रहे हैं देखो जंगल!
कैसे होगा यहां पर मंगल!
प्रदूषण फैलाती हैं जनता!
दूषित होते वायु और जल!
पाप सभी गंगा में हैं धोते!
कैसे हो गंगा जल निर्मल!
पर्यावरण की चिन्ता देखो!
सता रही मुझको पल पल!
आफ़त सिर चढ़ कर बोले!
इससे पहले नवल कर हल!
©️ नवल किशोर "नवल"