ज़ुल्फ़ तेरी लहराई फिर से,
ली अंगड़ाई मौसम फिर से !!
दहलीज़ें भीगी - भीगी है,
सौंधी खुशबू आई है फिर से !!
जी नहीं भरता मिलकर उनसे,
क्या जादू है उनमें ऐसा !!
बिजली गुल हो गई है फिर से,
थरथराये हैं लब फिर से !!
ये ना समझना पागल हूँ मैं,
कुछ का कुछ बोले जाता हूँ !!
पर ये सच है सोलह आने,
मदहोशी छाई है फिर से !!
सर्वाधिकार अधीन है