जो कल तलक ढूंढते थे हमें अपनी गलियों में सुबह और शाम,
कुछ रोज़ नज़र न आए तो अपनी यादों से मिटा गए,
कहनी तो नहीं थी, मगर कह रहे हैं अब...
हम ज़रा ज़िंदगी में मशरूफ़ क्या हुए हमारी जगह लेने कुछ लोग नए आ गए..!
@कमलकांत घिरी.✍️
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कुछ रोज़ नज़र न आए तो अपनी यादों से मिटा गए,
कहनी तो नहीं थी, मगर कह रहे हैं अब...
हम ज़रा ज़िंदगी में मशरूफ़ क्या हुए हमारी जगह लेने कुछ लोग नए आ गए..!
@कमलकांत घिरी.✍️