शतरंज की बिसात का प्यादा हूँ, मारा हुआ,
मैं खेल रहा वो बाजी जो था ही, हारा हुआ।
मार देता उसका राजा, सही चाल चलती तो,
जब था जिंदा तो था ऐसे जैसे नकारा हुआ।
बाजी पलट कर रख दूँ प्यार से बुला ले जो,
गया ही नहीं, बुलाया तो कैसे दुतकारा हुआ।
छीन ली ताकत रानी, हाथी, घोड़े सब मोहरे,
बनाया राजा कैसा सारे हथियार उतारा हुआ।
मैंने माँगा था साथ उसका रहे हर दम पास,
मैं मरा भी तो लड़ते-लड़ते जब बेसहारा हुआ।
🖊️सुभाष कुमार यादव