सारे जहाँ में अंधकार है,
जहाँ देखो हाहाकार है,
न जाने कब बदलेगा ये युग,
चारों तरफ फैला भ्रष्टाचार है।
सारे जहाँ में अंधकार है।
सर्वत्र व्याप्त कालाबाजार है,
यहाँ का राजतंत्र लाचार है,
न जाने कब बदलेगा ये युग,
हर काबिल नवयुवक बेरोजगार है।
सारे जहाँ में अंधकार है।
राजनेता के हाथ में अधिकार है,
स्वतंत्रता का हो रहा विकार है,
न जाने कब बदलेगा ये युग,
हो रहा तितली के साथ दुराचार है।
सारे जहाँ में अंधकार है।
भुगत रहा हर बेगुनाह अत्याचार है,
दिनों-दिन बढ़ रहा आतंक का आकार है,
न जाने कब बदलेगा ये युग,
हो रहा राम राज्य का सपना तार-तार है।
सारे जहाँ में अंधकार है।
🖊️सुभाष कुमार यादव