हवा है, फिजा है, समा है;
पर इनमें अब वो रवानी कहां है??
गौर से देखिए जिंदगी में किसी के,
हर किसी ना किसी की कहानी यहां है।
कृष्ण जैसा समर्पण नहीं अब रहा,
मीरा और राधा जैसी दीवानी कहां है??
प्रेम की मांग में दांव पर सब लगे,
पर असल में वो कीमत चुकानी कहां हैं??
अपने किरदार में ही सभी व्यस्त हैं,
कोई मेरी क्या सुने और सुनानी कहां है??
शौक तो खूब है कि सुकुं से जियूं,
पर सूकुं से भरी जिंदगानी कहां है
----रोहित कुमार