कैसे लग गई तुझको, ये हवा ज़माने की..
और ना बदलेगा, कसम उठा ज़माने की..।
कुछ परेशां से लोग खड़े हैं, चलो अब तो..
करें किश्त– ओ–कर्ज़, अदा ज़माने की..।
दिल में शोला–ए–उम्मीद भी, जगेगी मगर..
पहले नफ़रत की तो आग, बुझा ज़माने की..।
मेरी तरफ़ इतनी, उम्मीदे–निग़ाह से न देख..
मसला–ए–इश्क़ पे, न होगी रज़ा ज़माने की..।
बहुत दिनों बाद निकला, तेरे शहर की गलियों में..
इतनी कौन बदल गया, ये रंगत–ओ– फ़ज़ा ज़माने की..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




