इश्क़ की खातिर, दर्द का तराना छोड़ दे क्या,
ग़ज़ल न गा सके तो गुनगुनाना छोड़ दे क्या।
तुम्हें नहीं पसंद शायरी इसमें मेरी क्या ख़ता,
तुम्हारे लिए, अंदाज-ए-शायराना छोड़ दे क्या।
ज़िंदगी की ठोकरों से सीखा है जीने का हुनर,
गम का सैलाब देख, मुस्कराना छोड़ दे क्या।
इश्क़ इबादत है, तुमने तो इबादत ही छोड़ दी,
तुम्हारे लिए अब इश्क़ सूफ़ियाना छोड़ दे क्या।
सब कुछ तो छोड़ दिया मैंने, राह-ए-इश्क़ में,
अब तुम्हारे वास्ते, हम ज़माना छोड़ दे क्या।
🖊️सुभाष कुमार यादव