नभ की नीलिमा में जब प्रथम प्रभात ने आँखें खोलीं,
तब काल ने अपनी धड़कनें गिननी शुरू कीं।
दूर-दूर तक फैले आकाश के आँचल में
ग्रह दीप-सा जल उठे,
नक्षत्र मोतियों की माला बन झिलमिलाए,
और सृष्टि ने मौन में अपना पहला मंत्र रचा।
ऋषियों की दृष्टि केवल नेत्रों तक सीमित न थी,
उनकी चेतना आकाश की धड़कन सुन लेती थी।
वे अग्नि के पास बैठ
हवन की लपटों में ग्रहों की चाल पढ़ते,
धुएँ की रेखाओं में भविष्य की इबारत खोजते,
और मौन को भी बोलना सिखा देते।
कभी चंद्र शीतल मुस्कान लेकर
मानव मन को सहलाता है,
तो कभी सूर्य अपने तेज से
अज्ञान की परछाइयों को जला देता है।
शनि की गंभीर चाल में
संयम का पाठ छिपा है,
और बुध की चपल किरणों में
बुद्धि की चंचल उड़ान।
नक्षत्र केवल आकाश की सजावट नहीं,
वे समय के प्रहरी हैं।
हर जन्म, हर यात्रा, हर संकल्प
उनकी आँखों के नीचे घटित होता है।
वे संकेत देते हैं,
मनुष्य चुनता है—
यही है नियति और पुरुषार्थ का संवाद।
ईश्वर ने सृष्टि को ग्रंथ बनाया,
ग्रह उसके अक्षर बने,
नक्षत्र विराम-चिह्न,
और ऋषि वे पाठक
जिन्होंने उसे पढ़कर
मानवता को अर्थ समझाया।
आज भी जब कोई जिज्ञासु दृष्टि
रात्रि के आकाश को निहारती है,
तो उन प्राचीन खोजों की गूंज
हृदय में उतर आती है—
मानो ब्रह्मांड स्वयं कह रहा हो,
“मैं रहस्य हूँ,
पर खोजने वाले के लिए
मैं सदा खुला हूँ।”


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







