ये रात ढ़ल गई
मैं चलता रहा सफर में ये रात ढ़ल गई
यादों के स॔ग, सहर में, ये रात ढ़ल गई
ऐसे में तुम कहां हो ये पूछा जो चांद से
वो चलता रहा सफर में ये रात ढ़ल गई
न नींद थी कहीं ना अब करार था कोई
तन्हा थे, हम, सफर में, ये रात ढ़ल गई
इस गुप अंधेरी, रात में, हम जागते रहे
थे, इश्क के, असर में, ये रात ढ़ल गई
मोहब्बत की ओढ़ चादर सो गए थे हम
यूं ऐसे, हँसी, सफर में, ये रात ढ़ल गई
जब छुप गए, सितारे, और भोर हो गई
वो, आए, नहीं नजर में ये रात ढ़ल गई
यादव ने उनको ढूंढ़ा न जाने कहां-कहां
वो खो गए, सफर में, और रात ढ़ल गई
- लेखराम यादव
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