प्यार में बग़ावत भी की, धोखा भी पाया,
दिल ने ख़ुद को हर मोड़ पर तन्हा भी पाया।
जिसे समझा था जान से बढ़कर कभी,
उसी ने मुझे आज पराया भी पाया।
हमने तो दी थी सच्ची मोहब्बत उन्हें,
मगर उनके लबों पर फरेब भी छाया।
हर ख़्वाब जो उनकी आँखों में बुना,
वो ख़्वाब टूटा, वो आईना भी ढहाया।
बग़ावत की तो आग लगाई दिल में,
पर जलते हुए ख़ुद को भी बेहाल पाया।
जिन वादों पर थी ज़िन्दगी टिकी हुई,
वही वादे हवा में कहीं उड़ते पाया।
अब शिकवे भी नहीं, कोई आस भी नहीं,
दिल को ख़ुद से ही अब जुदा पाया।
'अंकुश' ने सीखा मोहब्बत का फ़साना,
कभी सच, कभी झूठ, सब एक सा पाया।