पापा को मुस्कुराते देखा,
तो अपनी सांसों को चलते देखा।
हज़ारों दर्द में भी पापा कभी
ग़मगीन नहीं होते,
मैंने ख़ुद को उनमें जीते देखा।
पापा जब हम पर गुस्सा होते हैं,,
तो मुझे बड़ी ही हॅंसी आती है।
क्योंकि वो गुस्सा उनकी नाराज़गी नहीं
उनका हमारे लिए प्यार होता है
जिसे वो गुस्से से जताते हैं।
हम उसके विपरीत ही करते हैं,
जो पापा कहते हैं।
क्योंकि वो कहते नहीं पर हम जानते हैं,
जो हम चाहते हैं वो भी वही चाहते हैं।
पापा को मैंने कभी नए कपड़ों में नहीं देखा,
ना ही कभी उन्हें अच्छा खाते देखा।
हमारी कोई ख़्वाहिश अधूरी ना रह जाए,
इसलिए उन्हें बस प्याज़ रोटी खाते
और फटे कपड़े पहनते देखा है।
हम क़ाबिल बन जाएं ,
इसलिए पापा अक्सर लोगों के सामने
हमारी मौज़ूदगी में हमे बुज़दिल कहते और
हमारी बुराई करते हैं ।
पर चुपके से सुना है मैंने कई बार,
जब हम ना हो उनकी महफ़िल में
तब हमे बहादुर कहते और तारीफ़ें करते हैं।
~ रीना कुमारी प्रजापत