"ग़ज़ल"
भले चार दिन की क्यूॅं न हो हस्ती ज़रूर है!
जो भी शय बनी है एक दिन मिटती ज़रूर है!!
तुम लाख बचाओ ख़ुद को पर एक-न-एक दिन!
ये जो ज़िंदगी है मौत इसे डसती ज़रूर है!!
जाता है जो भी उस तरफ़ कभी लौटता नहीं!
इस धुन्द के उस पार कोई बस्ती ज़रूर है!!
ना-उम्मीदी हज़ार हो ज़िन्दगानी में लेकिन!
इक उम्मीद की शम्अ है जो जलती ज़रूर है!!
पीने वालों को पी जाती है शराब एक दिन!
इस कड़वे ज़हर में माना कि मस्ती ज़रूर है!!
ये इश्क़ और मुश्क कभी छुपाए नहीं छुपते!
जब भी खिलती है कली तो महकती ज़रूर है!!
बुरा से बुरा दिन भी गुज़र जाता है 'परवेज़'!
कितनी हसीं हो शाम मगर ढलती ज़रूर है!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*हस्ती = ज़िंदगी या वजूद (life or existence); *शय = चीज़ (thing); *धुन्द = कुहासा या कोहरा (fog or mist); *ना-उम्मीदी = निराशा (despair); *ज़िन्दगानी = ज़िंदगी (life); *उम्मीद = आशा (hope); *शम्अ = मोमबत्ती (candle); *इश्क़ = मोहब्बत (love); *मुश्क = कस्तूरी (musk).