पृथ्वी पर आने की चेष्टा मुझे होती तो मैं जाँच पड़ताल के विषय पर जरूर आता, लेकिन ये चेष्टा में मेरा हिस्सा न के बराबर था, और आ गया। लेकिन जांच पड़ताल तो मैंने जारी रखी क्योंकि मैं अपने चारों एक ध्वनि की गूंज सुन रहा था, जो भाषा मेरे भीतर थी वो भी मैं बाहर निकालने हि चकिचाया नहीं, बोलता रहा क्योंकि धीरे मुझे भाषा और भाषा के अर्थ के मध्य कड़ी जोड़ने का काम करना था, मेरे चारों की वस्तु स्थिति उपलब्धता से मैंने अपनी भाषा के अपने अर्थ को स्वीकारा वहीं व्यवहार की अनुभूति की ओर पूरकता की अग्रसर था, लेकिन कब तक मैं भाषा की स्वतंत्रता को खोता रहूंगा और अपने अर्थ को उस पर लपेटता रहूंगा, धीरे धीरे मेरी सहजता में, मैं नहीं मिल पाऊंगा, ना पृथ्वी छोड़ने के लायक रहूंगा और ना उस चेष्टा सृजन मुझसे होगा, मैं गलत हूं यही स्वीकार है।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




