रूह में जहां दर्द था, वो जगह मिली..
मगर वही बेवज़ह सी, वज़ह मिली..।
हम तो उसूलन कभी इतने, सख़्त ना थे..
फिर दुनिया हमसे, क्यूं इस तरह मिली..।
दिल के मिजाज़ को लेकर, हम सख़्त थे..
फ़िर आवारगी को, जाने कैसे शह मिली..।
वो गले मिले मुझसे, जिस तरह से यारो..
दिल में छुपी हुई उनके, एक गिरह मिली..।
ज़माने की अदालत में, कौन सुने फरियाद..
हमारे आंसुओं को भी, हज़ार ज़िरह मिली..।