वो रूठे हैं हमसे
रूठने की वजह बताई नहीं,
बस रूठे इस तरह
कि मनाया हमने उन्हें
पर उनकी कोई ख़बर फिर मिली नहीं।
अरसे बीते उन्हें दूर हुए हमसे
इसका दर्द बहुत है पर कोई गिला नहीं,
क्योंकि रूठता तो अपना ही है अपनों से
कोई पराया परायों से नहीं।
नज़रें उन्हीं को ढूॅंढती है बार-बार,
पर वो कहीं भी नज़र आते नहीं।
अपने ही दर से,अपनों से ही यूं ख़फ़ा हुए वो,
कि हम बिखर गए पर हमने जताया नहीं।
पल-पल उन्हीं का ख़याल आता था,
इंतज़ार हर पल बस उन्हीं का रहता था।
घड़ी-घड़ी दरवाज़ा खोलती मैं अपने घर का,
वो आ गए यही एहसास जो बार-बार होता था।
लगा कि हम पहचानेंगे नहीं उन्हें,
सो कल आए हैं अपने दर अपनों से मिलने
एक नई पहचान लिए वो।
उनका ये अलबेला अंदाज़ बड़ा प्यारा लगा,
पर बहुत खुशी होती अपनी उसी पहचान
में मिलते हमसे फिर वो।
हम उनसे बस यही कहेंगे,
हमेशा आपसे प्यार करते रहेंगे।
आप कितना ही हो नाराज़ हमसे
चाहे हो कितना ही गुस्सा,
हम हर पल आपके उसी प्यार और पहचान
के इंतज़ार में रहेंगे।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐
सर्वाधिकार अधीन है


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







