हसरत भरी निगाह जब जिस पे पड़ गई
ऐसा लगा उसे कोई बिजली ही गिर गई
रुख उनका देखके कोई रुक नही सका
हरएक शोख रिंदे की तबियत मचल गई
कहते हैं चांदनी से बढ़ कोई रोशनी नहीं
जब भी हटा नकाब तो शमा सी जल गई
अब दास उसका क्यूँ सजदा भला करेगा
उनके ही रंग में जब है दुनिया ही ढल गई
अफ़सोस जिन्दगी ने हमें पर ही नहीं दिए
ऊँचे आसमाँ में दिली हसरत ही उड़ गई II