ख्वाब-ओ-मंज़र
तुझसे नज़रें मिलाने का शौक तो नहीं,
नज़रों में मैंने मगर इक संसार देखा है।
तू ज़िंदगी की कोई ज़रूरत तो नहीं,
फिर क्यूँ तुझी में मेरा ख्वाब देखा है।
छुपते-छुपाते फिरे तू निगाहों से क्यूँ,
तेरे नजर चुराने में इक राज़ देखा है।
आज न जाने क्यूँ डूबा हूँ इन आँखों में,
तेरी नज़र में छुपा इक सैलाब देखा है।
जब नज़र टकराई, दिल बेकरार हुआ,
आसमानों की सैर-ओ-शबाब देखा है।
ले चल मुझे तू कहीं दूर तन्हाईयों में,
नज़रों में बसा एक आशियाँ देखा है।
क्यूँ हर साँस में तेरा ही ज़िक्र बसता है,
हर बार एक मिलन का सपना देखा है।
वो रात की चाँदनी, वो तेरा मुस्कुराना,
हर लम्हे में बस तेरा वो नक़्श देखा है।
तुझ में कहीं खो जाने का मन् करता है,
तेरी नज़र में वो सुकून-ए-जाँ देखा है।
क्यूँ हर धड़कन तुझी को पुकारती हैं,
हर पल दिल ने तेरा इंतज़ार देखा है।
बन जाए तू मेरी हर राह का हमसफ़र,
तेरे संग मैंने ख्वाब-ओ-मंज़र देखा है।