तेरे बदन को छूते ही,
कोई बिजली कड़क जाये !!
आलिंगन से तेरे,
मेरी वाह निकल जाये !!
कुछ ऐसा कर दे तू ,
रूह से रूह मिल जाये !!
तू नायिका विद्यापति की,
जीवन में कई रस घोले !!
सारी धरती धुरी पर,
तुझे देखके ही डोले !!
जो कमर पचासी झटके,
मेरी साँस निकल जाये !!
तेरे आते ही अब पतझर,
भूलके है बसंत खिले !!
तुझे देखते ही रसवंती,
मन को राहत सी मिले !!
जो डाले नज़र इक मुझपे,
मेरी आह निकल जाये !!
-- वेदव्यास मिश्र
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