कापीराइट गजल
वो करीब हैं दिल के, मगर फासले हैं बहुत
इस अन्जान सफर में, यह काफिले हैं बहुत
समझ आई नहीं उसे, कभी ये बेबसी हमारी
एक मुद्दत से इस दिल में, फासले हैं बहुत
वो खोलते ही नहीं, किताब दिल की अपनी
दरमियां दिलों के अब, यह फासले हैं बहुत
बढ़ रही हैं दूरियां अब, हमारे बीच नई-नई
कहने को पास हैं, मगर ये फासले हैं बहुत
अब मिलती नहीं हमें, ये रौशनी की किरन
इस आस्मां से जमीं तक, फासले हैं बहुत
समझाया है उन्हें बहुत, आज फिर से यादव
दिलों की राह में मगर, यह फासले हैं बहुत
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है