आज के दौर में आदमी, .
हद से ज्यादा परेशान हैं ,
दुश्मनों की तो मत पूछिये,
अपने गम से ही हैरान है,
अब तो खुद से सबर हीनही,
बेखबर सारा संसार है,
आज के दौर-----------
हद से ज्यादा है सिकवे गिले
अपने खुद के तलब दार से,
अब तो आंखे ही भरती नही '
जी के इतने जो जंजाल है,
ख़ुद से हारा हुआ आदमी,
कैसे जीने की सौगात दे,
जी के मरने से फुर्सत कहा,
दूसरों को जो फ़रियाद दे,
है मुकम्मल अब कुछ भी नही,
कैसे कोई मुकम्मल बने,
खुद से जी लो तुम अपने करम,
जिंदगी की यही शाम है,
आज के दौर-----
सर्वाधिकार अधीन है