सड़क से संसद तक फैला है संत्रास,
हर जीवधारी है हताहत से हताश,
कोरोना कहर से चहुँ दिक दिखै कोहराम।
मुँह-नासिका से करता है कयाम,
व्यथित बेचैन व्याकुल है अवाम,
कयामत से लड़ने की हो रही कोशिशें तमाम।।
कराहते हैं कार्मिक देख,करुण क्रंदन ,
प्रकृति में हो रहा पराभूत प्रस्पन्दन,
सिसक रही है मानव जाति।
मचल रही है परिवर्तन की क्रान्ति,
दहकते दिख रहे शवों से श्मशान,
जब तक न करोगे बचाव के अवधान।।
प्राण-वायु की हो रही किल्लत कालाबाजारी,
फैल रही समष्टि मे घातक बीमारी,
निगलता निरीह को निकेतन में।
समझाता हमें-आपको निःशब्द संकेतन में,
वन-वनस्पति का ना करो विनाश,
ना करो प्रकृति के जीव-जन्तुओं का नाश।।
रखो सामाजिक दूरी, मास्क पहनना है जरूरी,
वैक्सीन टीका लगवाना बहुत जरूरी,
प्राण-प्रयाण के बचाव का मूलमंत्र।
रखो सुरक्षित सामाजिक तंत्र,
नागरिकों की होगी जब पूर्णतः सुरक्षा,
तभी होगी राष्ट्र-रक्षा।।
होगा कोरोना का पराभव,
होगा राष्ट्र का नवोद्भव,
रण-बाँकुरे कर रहे कोरोना का काम तमाम।
उन्हें हमारा कोटि-कोटि प्रणाम।।
----क्रांति स्नेही