चुप है सब कुछ, पर भीतर शोर मचा है,
कुछ अधूरा-सा, अनकहा-सा बचा है।
साँस चलती है, देह हँसती है रोज़,
पर आत्मा के भीतर कोई रुदन सजा है।
दर्पण मुस्कानों का धोखा दिखाता है,
मन के आइनों में दर्द गहराता है।
कर्मों के कांटे चुभे हैं राहों में,
पर आशाओं का दीप अब भी जलाता है।
"ठहर जा ज़रा", कहती है अंतर की बात,
"तू खुद से क्यों भागे, ये कैसी है मात?"
"सुन मेरी आवाज़, जो मौन में गूँजती है,
हर आहट में, हर मौन में कुछ पूछती है।"
माया के बाज़ार में खुद को ना बेच,
चमकती चीज़ों की कीमत न आंके खरेखरे।
जो शाश्वत है, वही तेरा आधार है,
बाक़ी तो बस क्षणभंगुर व्यवहार है।
जोड़ ले फिर से आत्मा की डोर,
सुन उस पुकार को, जो करे तूझे चौर।
जीवन की दिशा को भीतर से निहार,
अंधेरों में भी मिलेगी रौशनी की धार।
फ़िज़ा

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




