मनोविनोद के गीत मैं रच नहीं सकता,
प्रभु ने दी नहीं मुझ को, यह योग्यता,
पर पीड़ा को स्वपीड़ा से करता संबद्ध,
फिर मन के भावों को मैं सदा लिखता।
प्रेम, घृणा, जीवन, आनंद और दु:ख,
इन पर रच गीत मोड़ दूँ जीवन रुख़,
निज सुख के साथ पर हित का भाव,
गीत वही जो दे हृदय को सच्चा सुख।
करता प्रयास रचूँ गीतों में नव-विचार,
व्यक्त करता मैं निज अंतस के उद्गार,
शब्द, पंक्ति, भाव कर दे हृदय स्पर्श,
देना आशीष में हृदय से भरपूर प्यार।
है नहीं कुछ बतलाने को, जो है ये गीत,
सुख-दुःख के साथी मेरे मन के ये मीत,
हे प्रभु कभी कोई ऐसी पंक्ति लिखवा दो,
सबका मन मोह सके सबके हृदय जीत।
🖊️सुभाष कुमार यादव