तेरा मेरा अफ़्साना, ज़िंदगी कुछ जुदा नहीं..
न चाहा वहीं हुआ, जो चाहा वो हुआ नहीं..।
कभी किसी मोड़ पे, उदास खड़े मिले हम..
कभी दूरियां रही, कभी फासला मिटा नहीं..।
कोई धूप मेरे, आधे आंगन से आगे न बढ़ी..
अफ़्ताब ने राह न बदली, पेड़ वो झुका नहीं..।
यूं मेरे दिल में जज्बातों के उठते हैं तुफां मगर..
जाने क्यूं मैं तेरी आंखों के, सैलाब में बहा नहीं..।
सुनकर मेरे ख़्यालात, कुछ फैसले न लेना दोस्त..
दिल की हकीक़त को, ज़माने के डर से कहा नहीं..।
पवन कुमार "क्षितिज"