सत्ता के गलियारों में, आवाज को दबा दिया गया।
सिसक सिसक कर दम निकला,
आज फिर एक दिया बुझा दिया गया।
इतना बिवश और लाचार कर दिया गया।
संघर्ष करते-करते, विकल्प मौत का चुनने पर मजबूर हो गया।
वर्षों से चुपके-चुपके, आंसुओं को पीता रहा।
कर दिया घर से बेघर, जहर घूंट का पीता रहा।
इंसानियत को करके शर्मिंदा, बैठे हैं मस्त मौला।
शिकन नहीं चेहरे पर,बनाकर चेहरा भोला भाला।
अभी देर नहीं हुई ,उठो जागो ऐ! साथियों।
न्याय के लिए ,आवाज बुलंद करो ऐ! साथियों।