मैंने देखें हैं आते-जाते कईं पतझड़,
झूठ को सच दिखलाते कईं पतझड़।
हरे-भरे जंगलों को पल में उजाड़ते,
जिंदगी, शबाब उतारते कईं पतझड़।
जहाँ भरी हुई थी खुशियाँ चारों ओर,
देकर दर्द उनको रुलाते कईं पतझड़।
बदलना जरूरी है समय के अनुसार,
जीवन के रंग बतलाते कईं पतझड़।
न आए पतझड़ तो बहार आए कैसे,
ठूँठ पर नये पत्ते लाते कईं पतझड़।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




